इस बार के पतझड़ कुछ इस तरह की हुई
कि बहार आने से पहले ही
मैं थक गयी ..
इस बार धक्का जो लगा
मैं जो गिरी
कि उठने से पहले ही
मैं थक गयी
इस बार भी इक तस्वीर बनाई थी
जिसमे रंग भरने से पहले ही
मैं थक गयी ..
इस बार आप आओगे ..
उम्मीद तो थी ...
पर इंतज़ार करते करते ही ..
मैं थक गयी ...
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पतझड़ तो भूला सा लगने लगा है
गर्मियों कि ये पहली बारिश
मिटटी कि वो गीली खुशबू
वो खुशबू भी तुम
वो बारिश भी तुम
गिर कर उठना तो फितरत है मेरी
पर आज एक हाथ साथ है
एक बात साथ है
वो साथ भी तुम
वो बात भी तुम
रंगों को तो कहीं पीछे छोड़ आई थी मैं
खुद ही खुद से भूली भूली सी थी
पता नहीं अब क्यों तुम्हारे ही साथ
फिर कुछ रंग चुराने हैं मुझे
वो रंग भी तुम्हारे
और वो तस्वीर भी तुम
इंतज़ार तो है ..
कुछ डर सा भी ..
कुछ सपने भी हैं ..
और उम्मीद भी ..
और वो सब ही हो तुम .
थक कर भी इंतज़ार होगा तुम्हारा
रुक कर भी सांस तुम्हारी ही होगी
आ जाओ ..
बस आ जाओ तुम .
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